हरियाणा, भारत की वो भूमि जहां वीरता और मेहनत की धमक भी है और चमक भी। जहां श्री हरि यानी भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में गीता का अमर ज्ञान दिया। जहां दुनिया का सबसे भयावह और बड़ा युद्ध महाभारत लड़ा गया। जो खेत-खलिहान, दूध-दही, खान-पान, संस्कृति और जीवंत इतिहास को समेटे हुए है, ये वो ही भूमि है जिसने खेलों में कामयाबी के लट्ठ गाड़े। भारत की इसी धरती ने देश को कई महान नेता दिए जिनसे यह राज्य समृद्ध हरियाणा कहलाया।
आइए इस चुनावी मौसम में हरियाणा के इतिहास में झांकते हैं, पंजाब से अलग होकर हरियाणा का राजनीतिक सफर कैसा रहा? आखिर कौन थे वो नेता और पार्टियाँ जिन्होंने इसे समृद्ध हरियाणा बनाया और अब राजनीति के इस दंगल में कौन किसे चुनौती दे रहा है?
राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा का नाम भगवान विष्णु के नाम से आया है। प्रदेश का नाम संस्कृत के शब्द "हरि" यानि भगवान और "अयन" यानि घर, जोकि "भगवान के निवास" का प्रतीक है। आजादी के बाद पंजाब में शामिल यह प्रदेश लंबे समय तक अपने लिए अलग राज्य की मांग करता रहा। 1 नवंबर साल 1966 को पंजाब से निकलकर हरियाणा ने एक राज्य के रूप में जन्म लिया। तब से लेकर अब तक हरियाणा की राजनीति में कई बदलाव आ चुके हैं। जाट लैंड के रूप में उभरे प्रदेश में गैर-जाट चेहरे भी राज्य की सत्ता पर काबिज हुए। हरियाणा ने देश को राजनीति के जो सियासी दांव-पेंच सिखाए हैं, उससे प्रदेश की सियासत की अहमियत देश में बढ़ी है।
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हरियाणा 1 नवंबर, 1966 को पंजाब से अलग होकर 17वें भारतीय राज्य के रूप में स्थापित हुआ था। तब हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री भगवत दयाल शर्मा बने। वह 142 दिनों तक सीएम रहे। पंजाब से अलग होकर नया राज्य बनने के बाद हरियाणा में पहला विधानसभा चुनाव फरवरी 1967 में हुआ। कांग्रेस ने पहले विधानसभा चुनाव में कुल 81 सीटों में से 48 सीटें जीतकर सरकार बनाई। तब कांग्रेस ने राव बीरेंद्र सिंह को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया था।
तब से लेकर अब तक हरियाणा की राजनीति में कई बदलाव आ चुके हैं। हरियाणा के पहले विधानसभा चुनाव में सिर्फ दो ही मुख्य पार्टियां थीं: कांग्रेस और जनसंघ (तब बीजेपी इसका हिस्सा थी)।
जबकि वर्तमान परिदृश्य में हरियाणा में कांग्रेस, बीजेपी के अलावा ईनेलो, जेजेपी, आम आदमी पार्टी समेत कई क्षेत्रीय पार्टियां भी हैं।
हरियाणा विधानसभा के लिए इस बार होने जा रहा चुनाव राज्य का 14वां विधानसभा चुनाव है। पंजाब से अलग होकर नया राज्य बनने के बाद हरियाणा में पहली बार साल 1967 में विधानसभा चुनाव हुए थे।
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हरियाणा की राजनीति में लाल तिकड़ी तीन प्रभावशाली राजनीतिक नेताओं को दर्शाती है। इन तीनों का हरियाणा के राजनीतिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव रहा है। ये नेता देवी लाल, बंसी लाल और भजन लाल हैं।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री बंसी लाल का राज्य की राजनीति पर गहरा प्रभाव रहा है। बंसी लाल की बहु किरण चौधरी और पोती श्रुति चौधरी ने हाल ही में हाथ का साथ छोड़कर बीजेपी का हाथ थामा है।
1959 में बंसी लाल को पहली बार जिला कांग्रेस कमेटी हिसार का अध्यक्ष बनाया गया। 1967 में बंसी लाल पहली बार विधायक चुने गए। इसके कुछ दिन बाद ही बंसी लाल हरियाणा के मुख्यमंत्री बन गए।
बंसी लाल को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का करीबी माना जाता था। बंसी लाल इमरजेंसी के दौरान देश के रक्षा मंत्री के पद पर थे।
साल 1991 में हरियाणा की सत्ता पर जब कांग्रेस दोबारा वापस आई तो बंसी लाल की जगह भजन लाल को राज्य का सीएम बनाया गया।
1996 के चुनाव में बंसी लाल ने कांग्रेस से अलग होकर हरियाणा विकास पार्टी बनाने का फैसला किया। चुनाव के बाद बंसी लाल बीजेपी के सहयोग के साथ सरकार बनाने में कामयाब भी हुए।
लेकिन साल 2000 के चुनाव में बंसी लाल की पार्टी राज्य में सिर्फ 2 सीटों पर सिमट गई और बंसी लाल के बेटे सुरेंद्र भी चुनाव हार गए।
साल 2004 के लोकसभा चुनाव में बंसी लाल की पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई।
इसके बाद सुरेंद्र ने पिता बंसी लाल से अलग लाइन लेते हुए हरियाणा विकास पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया।
2005 में बंसी लाल के दोनों बेटे सुरेंद्र और रणबीर चुनाव जीत गए। कुछ समय बाद प्लेन क्रैश में बंसी लाल के बेटे सुरेंद्र का निधन हो गया।
सुरेंद्र के निधन के बाद उनकी पत्नी किरण चौधरी ने हरियाणा की सियासत में कदम रखा और तोशाम से विधायक बनीं। साल 2006 में बंसी लाल का भी निधन हो गया।
साल 2009 के लोकसभा चुनाव में बंसी लाल की तीसरी पीढ़ी की राजनीति में एंट्री हुई। बंसी लाल की पोती और किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी कांग्रेस के टिकट से संसद पहुंची। साल 2024 में किरण चौधरी और श्रुति चौधरी बीजेपी में शामिल हो गईं।
भजन लाल लगभग 11 वर्ष 9 महीने तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। भजन लाल ने साल 1989 में फरीदाबाद लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीता। 1998 में भजन लाल करनाल लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए और 2009 में हिसार लोकसभा संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीता।
भजन लाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई ने हरियाणा जनहित कांग्रेस का गठन किया था। भजन लाल साल 2007 में कांग्रेस छोड़कर पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस में शामिल हो गए।
साल 2016 में कुलदीप बिश्नोई की पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया। फिलहाल कुलदीप बिश्नोई अब बीजेपी में हैं। भजन लाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई इस बार के लोकसभा चुनाव में हिसार से बीजेपी के टिकट के प्रबल दावेदार थे। वहीं भजन लाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन भी हिसार से कांग्रेस प्रत्याशी के प्रबल दावेदार थे।
चौधरी देवी लाल भारत के उप प्रधानमंत्री और हरियाणा के दो बार मुख्यमंत्री रहे। देवी लाल हरियाणा के पहले नेता थे जो देश के उप-प्रधानमंत्री बने। वह 1952 में पहली बार हरियाणा (तब पंजाब) से कांग्रेस पार्टी की तरफ से विधायक बने थे। आगे चलकर उन्होंने इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) की स्थापना की।
देवी लाल के चार बेटों में से एक ओम प्रकाश चौटाला थे, जो हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री रहे।
ओम प्रकाश चौटाला के दो बेटे हैं, अजय सिंह चौटाला और अभय सिंह चौटाला। अजय सिंह चौटाला के बड़े बेटे दुष्यंत चौटाला ने इंडियन नेशनल लोकदल से अलग होकर साल 2018 में जननायक जनता पार्टी की स्थापना की। साल 2019 के विधानसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला की जेजपी किंग मेकर बनकर उभरी थी।
साल 2013 में देवी लाल के बेटे ओम प्रकाश चौटाला और पोते अजय चौटाला जेबीटी घोटाले में जेल गए। इसके बाद इनेलो की कमान अभय चौटाला के हाथ में आई।
साल 2014 में अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला राजनीति में आए। वह हिसार लोकसभा सीट से चुनाव जीते।
दुष्यंत चौटाला सांसद तो बन गए लेकिन इनेलो साल 2014 के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार गई।
इसकी वजह थी पार्टी का दो भागों में बंट जाना। एक गुट अभय चौटाला का तो दूसरा गुट दुष्यंत चौटाला का।
साल 2018 में ओम प्रकाश चौटाला ने अजय चौटाला के दोनों बेटे दुष्यंत और दिग्विजय को पार्टी से बाहर कर दिया।
दिसंबर 2018 में दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी बनाई।
मुख्य नेता
बीजेपी - मनोहर लाल खट्टर
कांग्रेस - भूपेंद्र सिंह हुड्डा
जेजेपी - दुष्यंत चौटाला
आईएनएलडी - अभय सिंह चौटाला
साल 2019 के विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। त्रिशंकु विधानसभा में भाजपा पहले, कांग्रेस दूसरे और जेजेपी तीसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी थी। तब भाजपा और जेजेपी ने गठबंधन सरकार बनाई, जिसमें मनोहर लाल खट्टर दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। जेजेपी की तरफ से दुष्यंत चौटाला उपमुख्यमंत्री बने।
मुख्य नेता
बीजेपी - सुभाष बराला
कांग्रेस - भूपेंद्र सिंह हुड्डा
आईएनएलडी - ओम प्रकाश चौटाला
साल 2019 के विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। त्रिशंकु विधानसभा में भाजपा पहले, कांग्रेस दूसरे और जेजेपी तीसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी थी। तब भाजपा और जेजेपी ने गठबंधन सरकार बनाई, जिसमें मनोहर लाल खट्टर दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। जेजेपी की तरफ से दुष्यंत चौटाला उपमुख्यमंत्री बने।
मुख्य नेता
कांग्रेस - भूपेंद्र सिंह हुड्डा
आईएनएलडी - ओम प्रकाश चौटाला
हरियाणा जनहित कांग्रेस (बीएल) - भजन लाल
साल 2009 के विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। त्रिशंकु विधानसभा में कांग्रेस ने हरियाणा जनहित कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों के साथ सरकार बनाई। भूपेंद्र सिंह हुड्डा फिर एक बार राज्य के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे।
मुख्य नेता
कांग्रेस - भजन लाल
आईएनएलडी - ओम प्रकाश चौटाला
साल 2005 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत हासिल किया था। साल 2005 का चुनाव हरियाणा कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा था लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद पार्टी ने जाट चेहरे भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सूबे का मुख्यमंत्री बनाया।
हरियाणा में जातिगत जनगणना तो नहीं हुई, लेकिन पिछले साल सरकार ने पीपीपी आधार पर वर्ग विशेष को लेकर 72 लाख परिवारों में से 68 लाख के आंकड़े जारी किए थे। पिछले साल परिवार पहचान पत्र स्कीम के तहत सामान्य, एससी, बीसी और बैकवर्ड क्लास के परिवारों के आंकड़े सामने आए हैं। हरियाणा में एससी व बीसी वर्ग की बात करें तो कुल जनसंख्या का ये करीब 51 फीसदी है। पीपीपी के आधार पर प्रदेश की कुल संख्या 2 करोड़ 83 लाख है.
भूपेंद्र सिंह हुड्डा का जन्म हरियाणा के रोहतक जिले के सांघी गांव में 15 सितंबर 1947 को चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा और हरदेवी हुड्डा के घर हुआ था। उनके पिता चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा स्वतंत्रता सेनानी और भारत की संविधान सभा के सदस्य थे। हुड्डा ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत युवा कांग्रेस से की थी। हुड्डा चार बार रोहतक लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहे। 1991, 1996 और 1998 के लगातार तीन लोकसभा चुनावों में उन्होंने हरियाणा के जाटों के गढ़ रोहतक से चौधरी देवीलाल को हराया। भूपेंद्र सिंह हुड्डा 2005 से 2014, 9 साल तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। फिलहाल भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं। हुड्डा पंजाब एवं हरियाणा बार काउंसिल के सदस्य भी हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के दो बच्चे दीपेंद्र और अंजलि हैं। उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा मौजूदा समय में सांसद हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा इस बार कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं।
हुड्डा परिवार की तीसरी पीढ़ी के नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा प्रदेश की राजनीति से लेकर देश की राजनीति तक दिग्गज चेहरों में शुमार हैं। जूनियर हुड्डा के नाम से मशहूर दीपेंद्र हरियाणा के रोहतक लोकसभा से चौथी बार के सांसद हैं। उनके पिता भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और उनके दादा रणबीर सिंह हुड्डा स्वतंत्रता सेनानी, संविधान सभा के सदस्य और पंजाब सरकार में मंत्री थे। 4 जनवरी 1978 को हरियाणा के रोहतक में जन्मे दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने इंजीनियरिंग और एमबीए की डिग्री हासिल की है। राजनीति में आने के बाद हुड्डा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से साल 2020 में एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। राजनीति में आने से पहले हुड्डा बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों में नौकरी कर चुके हैं। साल 2005 में पहली पत्नी गीता ग्रेवाल से तलाक के बाद उन्होंने कुछ समय के लिए नौकरी से ब्रेक लिया। राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले जूनियर हुड्डा ने साल 2005 के उपचुनाव में संसद पहुंचकर अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की। उस समय दीपेंद्र हुड्डा सबसे कम उम्र के सांसद बने थे। तलाक के बाद दीपेंद्र हुड्डा ने दूसरी शादी राजस्थान कांग्रेस के बड़े नेता नाथूराम मिर्धा की पोती श्वेता मिर्धा से की। दीपेंद्र सिंह हुड्डा फिलहाल लोकसभा के सांसद हैं और राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं। इस वजह से दीपेंद्र सिंह हुड्डा भी मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल हैं।
24 सितंबर 1962 को हरियाणा के हिसार में चौधरी दलबीर सिंह के परिवार में शैलजा का जन्म हुआ। कुमारी शैलजा ने पंजाब यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई की। शैलजा ने कांग्रेस में शामिल होकर राजनीति की शुरुआत में ही पार्टी के लिए जमीनी स्तर पर काम किया। साल 1990 में उन्हें महिला कांग्रेस की अध्यक्ष बनाया गया। 1991 में कुमारी शैलजा सिरसा लोकसभा सीट से संसद पहुंची और नरसिम्हा सरकार में मंत्री बनीं। फिर 1996 में सिरसा और 2004 में अंबाला लोकसभा सीट से जीतीं। कुमारी शैलजा यूपीए की मनमोहन सरकार में भी मंत्री रह चुकी हैं। साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में कुमारी शैलजा अंबाला सीट से चुनाव हार गई थीं। इस बार के लोकसभा चुनाव में उन्होंने सिरसा से जीत दर्ज की। कुमारी शैलजा का अपनी ही पार्टी में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ कई बार टकराव हुआ। कुमारी शैलजा कांग्रेस की बड़ी दलित नेता हैं और पार्टी आलाकमान के करीबियों में से एक हैं।
अंबाला के मिजापुर माजरा गांव में 25 जनवरी, 1970 को नायब सिंह का जन्म हुआ। उनका परिवार अंबाला जिले के नारायणगढ़ विधानसभा के गांव मिर्जापुर के रहने वाला है। सैनी ने यूपी की चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की। 90 के दशक में अंबाला से ही उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। सैनी ने अंबाला बीजेपी के जिला युवा मोर्चा में महासचिव और जिला अध्यक्ष पदों की कमान संभाली। इसके बाद पार्टी ने उन्हें हरियाणा किसान मोर्चा के महासचिव पद की जिम्मेदारी भी दी। नायब सिंह सैनी ने साल 2009 में पहली बार नारायणगढ़ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन वे यह चुनाव हार गए। साल 2012 में पार्टी ने उन्हें अंबाला में जिला अध्यक्ष बनाया। साल 2014 में नायब सिंह सैनी ने एक बार फिर नारायणगढ़ सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीतकर विधानसभा पहुंचे। साल 2016 में उन्हें हरियाणा सरकार में श्रम-रोजगार मंत्री बनाया गया। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के इस्तीफे के बाद पार्टी ने उन्हें सीएम बनाया। नायब सैनी को हरियाणा के पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर का करीबी माना जाता है। इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा नायब सिंह सैनी के चेहरे पर चुनाव मैदान में उतरी है।
अंबाला कैंट के भीम सेन इलाके में 15 मार्च, 1953 को जन्मे अनिल विज छह बार के विधायक और प्रदेश की सरकार में गृह, खेल और स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं। अनिल विज ने अपनी सियासी पारी की शुरुआत संघ और विद्यार्थी परिषद से की थी। अंबाला कैंट के एसडी कॉलेज में पढ़ते हुए विज संघ और एबीवीपी से जुड़ गए, साल 1970 में विज एबीवीपी के महासचिव बने। साल 1974 में अनिल विज स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी करने लगे, जब साल 1990 में हरियाणा की अंबाला सीट से विधायक सुषमा स्वराज राज्यसभा गईं, तो पार्टी ने विज को नौकरी से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ने को कहा। विज ने चुनाव लड़ा और जीते भी, इसके बाद वह बीजेपी युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी बने। साल 1996 और 2000 के चुनाव में विज ने निर्दलीय ही जीत हासिल कर ली। लेकिन साल 2005 में विज अंबाला छावनी से चुनाव हार गए। 2009 में उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की। साल 2014 में भी उन्होंने अपनी जीत को दोहराया और प्रदेश में भाजपा सरकार बनने पर हरियाणा सरकार में बतौर कैबिनेट मंत्री शामिल हुए। अनिल विज नवंबर 2020 में राज्य में कोविड-19 वैक्सीन के लिए स्वेच्छा से आगे आने वाले पहले व्यक्ति बने। छह बार के विधायक विज हरियाणा भाजपा के वरिष्ठ नेता में शामिल हैं और खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानते हैं। हालांकि मनोहर लाल खट्टर के इस्तीफे और सैनी के सीएम बनने के बाद, उन्हें कैबिनेट में नहीं शामिल किया गया।
हरियाणा के सोनीपत जिले के बड़ौली गांव में साल 1963 में मोहन लाल का जन्म हुआ था। उनके पिता काली राम कौशिक गांव के एक सम्मानित कवि थे। मोहन लाल अपने नाम के पीछे अपने गांव का नाम लगाते आ रहे हैं। मोहन लाल बड़ौली ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई सोनीपत से पूरी की है। बाद में उन्होंने सोनीपत के बहालगढ़ चौक के पास कपड़े की मार्केट में एक दुकान चलाई। बड़ौली साल 1989 में संघ में शामिल हुए और बाद में बीजेपी में शामिल हो गए। राज्य में इनेलो शासन के दौरान वह मुरथल से जिला परिषद चुनाव जीतने वाले पहले बीजेपी उम्मीदवार थे। उस दौर में बड़ौली सोनीपत क्षेत्र के गिनती भर बीजेपी कार्यकर्ताओं में से एक थे। बड़ौली 1995 में मुरथल के मंडल अध्यक्ष बने थे। मोहन लाल बड़ौली 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। बड़ौली को सीएम नायब सैनी का काफी करीबी माना जाता है। नायब सिंह सैनी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी जगह बड़ौली को भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था। बड़ौली फिलहाल संगठन और सरकार दोनों में अहम जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। अध्यक्ष बनने से पहले बड़ौली भाजपा के प्रदेश महामंत्री थे।
हरियाणा की राजनीति के दिग्गज जाट नेता दुष्यंत चौटाला का जन्म हिसार जिले में 3 अप्रैल 1988 को हुआ था। हरियाणा की राजनीति में धाकड़ छाप छोड़ने वाले ताऊ देवीलाल के परिवार से आने वाले दुष्यंत चौटाला साल 2014 में सबसे कम उम्र के सांसद बनकर उभरे। उन्होंने हरियाणा की हिसार लोकसभा सीट से चुनाव जीता। साल 2014 के विधानसभा चुनाव में इनेलो दो खेमों में बंटी, एक गुट अभय चौटाला का तो दूसरा गुट दुष्यंत चौटाला का। साल 2018 में ओम प्रकाश चौटाला ने पारिवारिक विवाद के चलते दुष्यंत को पार्टी से बाहर कर दिया। दिसंबर 2018 में दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) बनाई। 2019 के विधानसभा चुनाव में दुष्यंत ने उचाना सीट से चुनाव जीता और उनकी पार्टी जेजेपी प्रदेश में किंगमेकर की भूमिका में उभर कर आई। 11 सीटें जीतने वाली जेजेपी ने भाजपा को समर्थन देने का फैसला लिया। दुष्यंत खुद खट्टर सरकार में उप मुख्यमंत्री बने। साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले दुष्यंत ने भाजपा से समर्थन वापस ले लिया। फिर भी दुष्यंत की पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव में अपना खाता नहीं खोल पाई। दुष्यंत की पार्टी जेजेपी ने इस बार के चुनाव में चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी से गठबंधन किया है।
अभय सिंह चौटाला पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवी लाल के पोते और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के बेटे हैं। राजनेताओं के परिवार में जन्मे अभय सिंह चौटाला ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत ग्राम पंचायत चुनाव से की थी। साल 2000 में अभय सिंह चौटाला ने रोरी विधानसभा से कांग्रेस पार्टी के रणजीत सिंह को हराया। साल 2005 में वे सिरसा जिला पंचायत के प्रेसीडेंट चुने गए। साल 2009 के उपचुनाव में उन्होंने एलनाबाद से जीत हासिल की। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड लहर के बावजूद इनेलो ने 2 सीटें जीतीं। साल 2014 में वे फिर विधायक बने और इनेलो दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इस बार अभय सिंह चौटाला हरियाणा विधानसभा में नेता विपक्ष बने। 2014 के पारिवारिक कलह के बाद इनेलो का प्रदर्शन खराब होता रहा। अभय सिंह चौटाला ने 2019 में एक मात्र इनेलो विधायक के रूप में चुनाव जीता। अभय सिंह के दो बेटे करण सिंह चौटाला और अर्जुन सिंह चौटाला हैं। फिलहाल इस बार के विधानसभा चुनाव में अभय सिंह चौटाला के नेतृत्व में इनेलो ने बसपा के साथ गठबंधन किया है।