Friday 22nd of November 2024

कहानी भारत में लगी इमरजेंसी की, जानिए कैसे इंदिरा गांधी के एक फैसले से बदल गया था हिंदुस्तान

Reported by: PTC Bharat Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  June 25th 2024 11:18 AM  |  Updated: June 25th 2024 03:11 PM

कहानी भारत में लगी इमरजेंसी की, जानिए कैसे इंदिरा गांधी के एक फैसले से बदल गया था हिंदुस्तान

ब्यूरो: Dalip Singh (Digital Editor) जब आप एक नई सुबह की उम्मीद में रात को सोते हैं और सुबह आंख खुलती है और महसूस करते हैं कि देश पूरी तरह से बदल गया है, हजारों-लाखों लोगों को उठाकर जेलों में डाल दिया गया है, बड़े-बड़े नेताओं को पकड़ लिया गया है। चाय पर अखबार आने का इंतज़ार हो रहा था कि पता चले कि कई अखबार छपे ही नहीं। रेडियो पर ख़बरें सुनाने वाले ख़बरनवीस की जगह अचानक देश की प्रधानमंत्री की आवाज़ सुनाई दे जिसे सुनकर आपको अपने कानों पर विश्वास ही ना हो। हम बात करेंगे आज़ाद भारत में रातोंरात लगाई गई इमरजेंसी की।

साल 1975 का था भारत में अचानक इमरजेंसी लगा दी गई। विलेन बनी त्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जिन्होने इस फैसले के बारे में अपनी कैबिनेट तक को नहीं बताया। 

क्या ये फैसला यूं ही ले लिया गया? ऐसा तो हो नहीं सकता। हम बात करेंगे उन कारणों कि जिसकी वजह से इंदिरा गांधी को ये कड़ा फैसला लेना पड़ा और नतीजा ये हुआ कि आज़ादी के बाद पहली बार कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई और भारत में गैर क्रांग्रेसी सरकार बनी।

साल 1966 में लाल बहादुर शास्त्री के बाद जब प्रधाममंत्री की कुर्सी पर इंदिरा गांधी बैठीं तो उनके दौर के कई बड़े नेताओं को अंदाज़ा भी नहीं था कि एक औरत जिसे वो लोग गूंगी गुड़िया भी कहा करते थे एक दिन वही उनपर भारी पड़ेगी। 

समय गुज़रता गया इंदिरा गांधी ने कई कड़े फैसले लेने शुरू कर दिए। उस दौर में इंदिरा बनाम न्यायपालिका भी हो गया क्योंकि इंदिरा के जिन फैसलों के खिलाफ़ अदालत का रुख किया गया उसमें हारने के बाद इंदिरा ने कानून में ही बदलाव कर दिए। इसके दो बड़े उदाहरण हैं एक है 14 बैंकों राष्ट्रीयकरण करना और दूसरा प्रीवी पर्स को खत्म करना।

14 बैंकों राष्ट्रीयकरण

सबसे पहले बात बैकों के राष्ट्रीयकरण की जहां सरकार और अदालत के टकराव की असल शुरूआत होती है। जुलाई 1969 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 14 बड़े प्राईवेट बैंकों को सरकारी कंट्रोल में लेने का ऐलान कर दिया। इसके लिए जल्दबाज़ी में आर्डीनैंस लाया गया। इसमें वो बैंक थे जिनके खाते में 50 करोड़ से ज़्यादा जमा थे। फैसला लेने के पीछे इंदिरा का तर्क था कि इससे बैंकों तक आम आदमी की पहुंच बढ़ेगी और हर तबके को बैंक से जोड़ा जाएगा। इन बैंकों में पंजाब नैशनल बैंक, इलाहाबाद बैंक, यूनियन बैंक, सिंडीकेट बैंक जैसे बड़े नाम आते हैं। आम जनता में इस फैसले का काफी अच्छा संदेश गया पर जिन बैकों को अचानक प्राईवेट से सरकारी कर दिया गया उससे खफ़ा होकर ये बैंक पहुंच सुप्रीम कोर्ट।

सेंटरल बैंक आफ इंडिया के डायरेक्टर आर.सी. कूपर भारत सरकार के फैसले के खिलाफ़ अदालत पहुंचे। सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा सरकार के बैंको के राष्ट्रीयकरण वाले कानून को गलत बताया पर इंदिरा सरकार ने कानून में ज़रूरी बदलाव करके कोर्ट के फैसले को ही पलट दिया। आप समझ सकते हैं कि अदालत से इंदिरा सरकार के टकराव की कितनी चर्चा हुई होगी।

बात प्रीवी पर्स की

जब देश आजाद नहीं हुआ था तब यहां 500 से ज्यादा छोटी बड़ी रियासतें थीं।उनके अपने राज्य, प्रजा और अपने कानून थे। 1947 में आजादी के बाद रियासतों को पाकिस्तान और हिंदुस्तान सरकार में विलय करने की बात उठी।

कुछ शर्तों के साथ राजाओं ने इस निर्णय को मान लिया। आजादी के बाद अधिकांश राजाओं ने भारत का हिस्सा बनना स्वीकार कर लिया। आजादी के बाद भारत में सरकार तो बनी लेकिन रजवाड़ों का भी रसूख था।

प्रिवी पर्स दरअसल उस ग्रांट को कहा जाता है जो राजा-महाराजाओं को उनका खर्च चलाने के लिए दी जाती थी। इन शाही घरानों में जयपुर, उदयपुर, पटियाला, ग्वालियर, हैदराबाद समेत कई रजवाड़े थे।

1969 में संसद में ‘प्रिवी पर्स’ ख़त्म करने के लिए संवैधानिक संशोधन करने के लिए बिल पेश कर दिया। लोक सभा में तो इसे बहुमत से पारित कर दिया गया पर राज्यसभा में यह बिल एक वोट से गिर गया। इसके बाद राष्ट्रपति वीवी गिरी सरकार की सहायता को आगे आये। उनके आदेशानुसार सभी राजाओं और महाराजों की मान्यता रद्द कर दी गई।

राष्ट्रपति के आदेश के खिलाफ सभी राजा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राष्ट्रपति के आदेश को रद्द कर दिया। जनता की भावना इस मुद्दे पर कांग्रेस के साथ थी और हवा इंदिरा गांधी के हक में थी। उन्होंने सरकार भंग करके चुनावों की घोषणा कर दी।इंदिरा भारी बहुमत से चुनाव जीतकर सत्ता में लौटीं।  इंदिरा गांधी की सरकार इस विधेयक को 1971 में दोबारा लेकर आई। संविधान में संशोधन करके ‘प्रिवी पर्स’ को हमेशा के लिए बंद कर दिया। यहां भी सरकार और अदालत का टकराव सामने आया।

भारत-और पूर्वी पाकिस्तान की लड़ाई

1971 की जंग के बाद नया मुल्क बना बंगलादेश, पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा। इस जीत के बाद इंदिरा का कद और बढ़ गया। पर कहानी अभी और भी बाकी है। 1971 लोकसभा चुनाव में भारी जीत के बाद ही इंदिरा की मुशकिलें और बढने लगीं। राय बरेली सीट पर मुकाबला था इंदिरा गांधी और राजनारायण के बीच, इंदिरा की जीत के बाद राजनारायन इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंच गए।इल्ज़ाम लगाया कि चुनाव में इंदिरा गांधी ने स्टेट मशीनरी का गलत और अपने हक में इस्तेमाल किया है।

केस चलता रहा, वो मौका भी आया जब पहली बार किसी प्रधानमंत्री के जज के सामने पांच घंटे तक सवालों के जवाब देने पड़े। 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा को दोषी करार दिया। राय बरेली के चुनाव को रद्द करार दे दिया, इंदिरा के 6 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी।

पर इंदिरा गांधी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। फिर आया 24 जून 1975 का दिन जब सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए कहा कि इंदिरा सिर्फ प्रधानमंत्री बनी रह सकती हैं, किसी बैठक में हिस्सा नहीं लेंगी ना ही संसद में वोटिंग का अधिकार होगा। तब तक इंदिरा के विरोधियों ने सरकार पर इतना दबाव बना दिया की इंदिरा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

जेपी आंदोलन

गुजरात मे तो इतना विरोध हुआ कि विधान सभा भंग करनी पड़ी। मुख्य मंत्री ने इस्तीफा दे दिया और राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। दूसरी तरफ बिहार में इंदिरा गांधी के सबसे बड़े विरोधी जय प्रकाश नारायण ने सरकार की नाक में दम कर दिया था।

बिहार में बड़े स्तर पर स्टूडेंट सड़कों पर थे। जय प्रकाश नारायण जिनको जेपी के नाम से भी जाना जाता है उन्होने संपूर्ण क्रांती का नारा दे दिया। जेपी ने तो यहां तक भी कह दिया कि इंदिरा सरकार हुक्मों को फौज, पुलिस और सरकार अधिकारी ना मानें। इसके बाद तो इंदिरा सरकार की जड़ें हिल गईं।रही सही कसर ट्रेड यूनियन के फायरब्रांड लीडर जार्ज फर्नांडिस की अगुवाई में रेलवे की हड़ताल ने पूरी कर दी। करीब 17 लाख वर्कर हड़ताल पर चले गए, चक्का जाम हो गया। इस हड़ताल की चर्चा पूरी दुनिया में हुई।हालांकि इंदिरा सरकार ने इस हड़ताल और विरोध को कुचल दिया, नेताओं को जेल भेज दिया। तब तक भारत की आर्थिकता पर बहुत बुरा असर पड़ा चुका था।

इमरजेंसी का दिन

24 जून 1975 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले  के बाद वो दिन भी आया जब 25 जून की आधी रात को इंदिरा गांधी ने एक बड़ा फैसला लिया। इंदिरा ने रात के वक्त पंश्चिम बंगाल के मुख्य मंत्री सिधार्थ शंकर रे को बुलाया। सिधार्थ शंकर रे संविधान के भी जानकार थे। प्लान बनाया गया भारत में इमरजेंसी लागू करने का।

इन फैसलों के पीछे एक शख्स और था जो पर्दे के पीछे से खेल खेल रहा था, वो थे इंदिरा के छोटे बेटे संजय गांधी। सिधार्थ शंकर रे के सुझाव के बाद इंदिरा गाँधी की सलाह पर तत्कालीन राष्ट्रपति फ़करूदिन अली अहमद ने एमरजेंसी लगाने को मंजूरी दे दी।

यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि राष्ट्रीय इमरजेंसी पहली बार नहीं लगाई गई थी। इससे पहले 1962 में इंडो-चाईना वार, 1971 में पाकिस्तान की जंग के दौरान भी देश में इमरजेंसी लगाई गई थी। ये दोनो इमरजेंसी तब लगाई गई थी जब देश को बाहरी ताकतों से खतरा था। 1975 वाली इमरजेंसी इससे अलग थी क्योंकि इसमें इमरजेंसी देश के अंदरूनी हालातों को देख कर लगाई गई थी जिसमें तर्क दिया गया कि मौजूदा हालत देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं।

इंदिरा गांधी ने इस फैसले के बारे में अपनी कैबिनेट तक को नहीं बताया। सुबह 6 बजे मंत्रीमंडल की बैठक बुला कर फैसले की जानकारी दे दी गई और आधे घंटे में मीटिंग खत्म हो गई।

अख़बारों की बिजली गुल, गिरफ्तारियां

आधी रात को ही दिल्ली के कई बड़े अखबारों की बिजली काट दी गई ताकि अखबार प्रिंट ना हों। सुबह होते होते देश भर में हज़ारों नेता गिरफ्तार कर लिए जिनमें जेपी नारायण, अटल बिहारी वाजपाई, लाल कृष्ण अडवाणी, जार्ज फर्नांडिस, लालू यादव, अरूण जेटली, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह जैसे बड़े नेता थे।

इन नेताओं की मेंटेनेंस आफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट यानी मीसा के तहत गिरफ्तारियां हुई थीं। उसी दौर में लालू यादव के घर बेटी ने जन्म लिया। लालू यादव ने इस कानून के नाम पर ही अपनी बेटी का नाम रख दिया मीसा भारती।

उस दौर में आरएसएस और जमात-ए-इस्लामी जैसी कई संगठनों पर बैन लगा दिया गया। लोगों की आज़ादी लगभग खत्म कर दी गई। हद तो और भी हो गई इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने जनसंख्या पर कंट्रोल करने के नाम पर एक प्रोग्राम चला दिया...ये था नसबंदी का प्रोग्राम। बड़ी संख्या में जबरन लोगों की नसबंदी कर दी गई। इस फैसले की वजह से आम लोगों में जबरदस्त गुस्सा भर गया। इमरजेंसी के दौरान सरकारी तंत्र लगभग बेकाबू हो चुका था। जो मन में आया वैसे फैसले लिए जाने लगे। 

पंजाब से भी ज़बरदस्त विरोध

दूसरी तरफ पंजाब से भी ज़बरदस्त विरोध की लहर चल रही थी।अमृतसर में अकाली दल ने डेमोक्रेसी बचाओ मोर्चे की शुरूआत कर दी।मोर्चे के दौरान करीब 40,000 लोगों की गिरफ्तारीयां हूईं। हरचंद सिंह लोंगोवाल और प्रकाश सिंह बादल जैसे बड़े अकाली नेताओं को भी गिरफ्तार किया गया।

1977 में हटी इमरजेंसी

आखिरकार 21 महीने बाद मार्च 1977 में इमरजेंसी हटानी पड़ी। 1977 में ही लोकसभा चुनाव हुए। कांग्रेस की चुनावों बुरी तरह हार हुई। इंदिरा गांधी, संजय गांधी समेत कांग्रेस के बड़े नेता हार गए। यूपी, बिहार और पंजाब जैसे राज्यों में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला। कांग्रेस को पूरे देश से सिर्फ 154 सीटें ही मिलीं।

ये पहली बार था कि आज़ाद भारत में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। जनता पार्टी ने सरकार बनाई, मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने पर ये सरकार भी मुश्किल से दो साल ही चल सकी। 1980 में इंदिरा गांधी फिर सत्ता में आईं, लेकिन जून 1980 में उन्हे गहरा सदमा लगा जब 33 साल के उनके बेटे संजय गांधी एक जहाज हादसे में मारे गए।

ऑपरेशन  ब्लू स्टार और इंदिरा गांधी की हत्या

फिर साल आया 1984  जब पंजाब संकट को संभालते संभालते इंदिरा गांधी मुसीबत में घिर गईं।अमृतसर में हरिमंदिर साहिब पर फौजी कारवाई इंदिरा गांधी के दौर में हई और वहीं से ही इंदिरा गांधी की ज़िंदगी के आखरी दिन शुरू हो गए। सिखों में इंदिरा सरकार के खिलाफ ज़बरदस्त गुस्सा था। कुछ ही महीनों बाद 31 अक्तूबर 1984 को दिल्ली में उनके घर पर ही उनके सिख बाडीगार्ड सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने इंदिरा को गोलियों से भून दिया।

PTC NETWORK
© 2024 PTC Bharat. All Rights Reserved.
Powered by PTC Network