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मंगल पांडे: 1857 के संग्राम में क्यों खास है मेरठ और विद्रोहियों ने क्यों चुना रविवार का दिन?

Reported by: PTC Bharat Desk  |  Edited by: Deepak Kumar  |  July 19th 2024 02:09 PM  |  Updated: July 19th 2024 02:09 PM

मंगल पांडे: 1857 के संग्राम में क्यों खास है मेरठ और विद्रोहियों ने क्यों चुना रविवार का दिन?

ब्यूरोः हमारा देश भारत भले ही 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ हो, लेकिन आजादी दिलाने की कवायद सालों पहले ही शुरु हो गई थी। भारत की स्वतंत्रता के लिए सालों तक लड़ाई चली, जिसमें हमनें कई वीर सपूत खोए। आजादी दिलाने में कई महान नायकों ने अपनी अहम भूमिका निभाई। लेकिन आजादी की लड़ाई की शुरुआत 1857 में हो गई थी। दरअसल साल 1857 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ बिगुल फूंका गया था। अंग्रेज इसे सैन्य विद्रोह मानते हैं लेकिन हम भारतीय इसे स्वाधीनता आंदोलन की पहली लड़ाई के रूप में जानते हैं। 1857 की क्रांति की शुरुआत बलिया के मंगल पांडे ने की थी।

स्वाधीनता आंदोलन के नायक मंगल पांडे

मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया के नगवा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था और वे ब्राह्मण परिवार से आते थे। मंगल पांडे ने 22 साल की उम्र में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ज्वाइन करली थी। वह बंगाल की नेटिव इंफेंट्री की 34वीं बटालियन में शामिल हुए थे। दरहसल इस बटालियन में ब्राह्मण अधिक संख्या में थे, जिस वजह से उनका चयन इस बटालियन में हुआ था। 

धार्मिक भावना के कारण शुरु हुआ विद्रोह

आजादी के आंदोलन के नायकों में से एक मंगल पांडे ने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी। मंगल पांडे ने उस समय अपनी ही बटालियन के खिलाफ बगावत कर दी थी। साल 1856 में ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ सैनिकों को इनफील्ड पी-53 राइफल दी गई थी। इन राइफलों को लोड करने के लिए कारतूस के ऊपरी हिस्से को पहले दांत से काटना पड़ता था। इसी बीच सिपाहियों में किसी ने अफवाह फैला दी कि राइफल के ऊपर जो परत होती है उसे बनाने के लिए सुअर और गाय की चर्बी का इस्तेमाल होता है। इससे हिंदु और मुस्लिम सिपाहियों की धार्मिक भावनाएं आहत हो रही थीं। यह बात आग की रफ्तार से नेटिव इंफेंट्री की 34वीं बटालियन में फैलने लगीं। नतीजा यह हुआ कि बैरकपुर में 2 फरवरी 1857 की शाम को परेड के दौरान जवानों ने नए कारतूसों को इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया।

मंगल पांडे ने अकेले फूंका बिगुल

अंग्रेजों की पूरी कोशिश थी कि विद्रोह की किसी भी तरह से कुचल दिया जाए। लेकिन कारतूस इस्तेमाल न करने वाली बात एक छावनी से दूसरी छावनी में फैल रही थी। बैरकपुर छावनी में भी सिपाहियों के अंदर आग जल रही थी। सैनिक विद्रोह के लिए पूरी तरह से एकमत थे। इस बीच मंगल पांडे ने 29 मार्च 1857 को शाम 5:10 बजे उन्होंने विद्रोह कर दिया।

विद्रोह का पता चलने के बाद वहां पहुंचे सैनिकों को मंगल पांडे ने गाली देकर ललकारा। दुसरी तरफ मंगल पांडे के विद्रोह की सूचना मिलने पर लेफ्टिनेंट बीएच बो पहुंच गया। उसे देखते ही मंगल पांडे ने लेफ्टिनेंट बो पर गोली चला दी, लेकिन वो गोली लेफ्टिनेंट बो के घोड़े को लगी। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 08 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी दे दी गई।

रविवार के दिन शुरु हुआ विद्रोह

मंगल पांडे की फांसी के बाद अंग्रेजों को लगा कि विद्रोह पूरी तरह से दब गया है। लेकिन मेरठ छावनी में 10 मई 1857 को ही 85 जवानों ने मिल कर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था। इसे मंगल पांडे की तरफ से उठाए गए पहले कदम के बाद दूसरा बड़ा कदम और आजादी के लिए फूटी पहली चिंगारी माना जाता है। मेरठ छावनी के जवानों ने 10 मई का दिन इसलिए भी चुना क्योंकि उस दिन रविवार था बहुत से अंग्रेज अफसर चर्च गए हुए थे। अभ्यास के दौरान जब कारतूस खोलने का मौका आया तो वहां मौजूद अफसरों से भारतीय सिपाहियों की कहा सुनी हो गई और भारतीय सिपाहियों ने तीन अंग्रेज अफसरों को मार डाला।

मेरठ बना केंद्र बिन्दू

मेरठ छावनी के विद्रोही सिपाहियों ने फिर चर्च पर हमला बोल दिया और बहुत सारे अंग्रेज अफसर वहीं पर मारे गए। इसके बाद सिपाही आम लोगों में शामिल हो गए, जिससे सैन्य विद्रोह भीड़ के विद्रोह में तबदील हो गया। उस समय मेरठ की सदर कोतवाली के कोतवाल धनसिंह गुर्जर थे जहां सिपाहियों के विद्रोह की खबर फैलते ही आसपास के गांव के लोग जमा हो गए थे। धनसिंह इस समूह के नेता के रूप में उभरे और उनके नेतृत्व में मेरठ की जेल पर हमला कर दिया गया। जेल से कैदियों को आजाद कराकर, भारी मात्रा से हथियार लूटकर, जेल को आग लगा दी गई। इसके बाद सिपाहियों ने दिल्ली की तरफ कूच किया।

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