नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की रायबरेली और अमेठी सीट पर कांग्रेस की उम्मीदवारी को लेकर कई हफ्तों से चल रही उठापटक और अनिश्चितता खत्म हो गई। शुक्रवार को कांग्रेस ने गांधी परिवार की पारंपरिक दोनों सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, लेकिन इस बार एक बड़ा फेरबदल हुआ है।
इस बार राहुल ने रायबरेली का रुख किया है, जो शायद अमेठी की तुलना में अधिक सुरक्षित सीट है, जहां से वह 2019 में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से हार गए थे, जबकि उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा चुनाव नहीं लड़ रही हैं।
कांग्रेस ने यह ऐलान दोनों सीटों के लिए नामांकन दाखिल करने के आखिरी दिन किया, जहां 20 मई को मतदान होना है। पार्टी ने अमेठी में किशोरीलाल शर्मा को मैदान में उतारा है, जो दो दशकों से अधिक समय से अमेठी और रायबरेली में नेहरू-गांधी परिवार के प्रभावशाली प्रतिनिधि हैं।
ऐसा 25 साल बाद होगा, जब कोई गांधी अमेठी से मैदान में नहीं होगा। कांग्रेस अध्यक्ष बनने के एक साल बाद, 1999 में सोनिया गांधी ने यहीं से अपनी चुनावी शुरुआत की। 2004 में, वह रायबरेली स्थानांतरित हो गईं, जिससे राहुल को इस सीट से चुनावी शुरुआत करने का रास्ता मिल गया।
पार्टी नेताओं के मुताबिक, राहुल के रायबरेली शिफ्ट होने के पीछे मुख्य कारण यह है कि 2019 की हार के बाद अमेठी अब पारिवारिक सीट नहीं रह गई है। इसके अलावा, राहुल दूसरी सीट वायनाड से चुनाव लड़ रहे हैं, जिस पर 26 अप्रैल को मतदान हुआ था। उन्हें रायबरेली से चुनावी जीत मिलने के बाद परिवार और सोनिया के व्यक्तिगत संबंधों का हवाला देते हुए वायनाड सीट को छोड़ना आसान होगा।
दूसरी ओर अमेठी से राहुल को फिर से हारने का एक अनकहा डर भी था। हालांकि, इस सीट से चुनाव न लड़ने के राहुल के फैसले पर ईरानी की चुनौती से भागने का आरोप लगना तय है। इससे पहले कहा गया था कि राहुल और प्रियंका, दोनों अपनी पारंपरिक सीटों से चुनाव मैदान में उतरने को लेकर अनिच्छुक थे।
राहुल ने तर्क दिया था कि अगर केरल की वायनाड सीट पर उन्हें दूसरी बार जीत मिली तो वह रायबरेली जीतने की स्थिति में भी वायनाड नहीं छोड़ सकते। इस बात की भी आशंका थी कि इसका असर केरल में 2026 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की संभावनाओं पर पड़ सकता है। इसके बाद प्रियंका को चुनाव लड़ने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया।
एक तर्क ये भी है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता इस पर एकमत थे कि गांधी परिवार के हिंदी पट्टी से चुनाव नहीं लड़ने से लोगों के बीच एक खराब राजनीतिक संदेश जाएगा कि राहुल ने आखिरकार हार मान ली।
इस बीच कांग्रेस के टिकट की घोषणा भाजपा द्वारा उत्तर प्रदेश के मंत्री दिनेश प्रताप सिंह को रायबरेली से उम्मीदवार घोषित करने के कुछ घंटों बाद हुई है, जबकि ईरानी पहले ही अमेठी से अपना नामांकन दाखिल कर चुकी हैं।
दिनेश प्रताप ने 2019 में भी रायबरेली से चुनाव लड़ा था। हालांकि, वह सोनिया से हार गए, लेकिन वह 2014 के मुकाबले आधा बहुमत आधा हासिल करने में कामयाब रहे थे।
एक कारण यह है कि कांग्रेस नहीं चाहती थी कि प्रियंका और राहुल दोनों चुनाव लड़ें, क्योंकि सोनिया पहले से ही राज्यसभा सदस्य हैं, राहुल और प्रियंका दोनों के जीतने की स्थिति में संसद में परिवार के तीन सदस्य होंगे। इससे भाजपा को कांग्रेस के खिलाफ अपनी वंशवादी हमले की धार को तेज करने का मौका मिलेगा।
2019 में वायनाड सीट से राहुल के लड़ने से कांग्रेस को केरल में लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने में मदद मिली थी। हालांकि, 2021 विधानसभा चुनाव में, पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।
सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले एलडीएफ ने लगातार दूसरा कार्यकाल हासिल करके इतिहास रचा, जिससे केरल में हर पांच साल में सरकारें बदलने की परिपाटी को विराम मिल गया। अब 2026 का केरल विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है।
अमेठी और रायबरेली का इतिहास
वैसे आजादी के बाद से, अमेठी और रायबरेली सीट पर कांग्रेस का प्रभुत्व रहा है। इन सीटों से इंदिरा, राजीव, संजय जैसे गांधी परिवार के अन्य सदस्य संसद पहुंचे हैं और इन सीटों पर कांग्रेस को 3 बार हार मिली है।
1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में इंदिरा गांधी, रायबरेली से राज नारायण से हार गईं। 1996 और 1998 के आम चुनावों में कांग्रेस फिर से यह सीट हार गई, जब कोई भी गांधी परिवार का सदस्य मैदान में नहीं था। हालांकि, 2019 में कांग्रेस ने अमेठी सीट गंवा दी।
2019 में, अमेठी से दो बार के सांसद राहुल, 55,000 से अधिक वोटों से हार गए। जबकि सोनिया ने 2004 से रायबरेली सीट पर कब्जा बरकार रखा है। ये 2019 में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस द्वारा जीती गई एकमात्र सीट थी।
इससे पहले फिरोज गांधी ने 1952 और 1957 में रायबरेली का प्रतिनिधित्व किया था। हालांकि, इंदिरा ने 1964 में राज्यसभा सदस्य के रूप में संसद में प्रवेश किया, लेकिन उनकी लोकसभा की शुरुआत 1967 में रायबरेली से हुई। 1977 में हारने से पहले उन्होंने 1971 में फिर से सीट जीती।
1980 में, इंदिरा ने अविभाजित आंध्र प्रदेश में रायबरेली और मेडक दोनों से चुनाव लड़ा, दोनों में जीत हासिल की और मेडक सीट बरकरार रखने का फैसला किया।
गांधी परिवार का अमेठी से जुड़ाव 1980 में शुरू हुआ, जब संजय गांधी ने पहली बार यहां से चुनाव लड़ा और जीता। संजय की मृत्यु के बाद, राजीव ने 1981 में अमेठी से चुनावी शुरुआत की और 1991 में अपनी मृत्यु तक इस सीट पर बने रहे। आठ साल के अंतराल के बाद, गांधी परिवार का 1999 में वापस अमेठी पर कब्जा हुआ, जब सोनिया ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की।
किसने क्या कहा?
प्रियंका ने एक्स पर लिखा, "किशोरी लाल शर्मा जी से हमारे परिवार का वर्षों का नाता है। अमेठी, रायबरेली के लोगों की सेवा में वे हमेशा मन-प्राम से लगे रहे। उनका जनसेवाल का जज्बा अपने आप में एक मिसाल है। आज खुशी की बात है कि श्री किशोरी लाल जी को कांग्रेस पार्टी ने अमेठी से उम्मीदवार बनाया है। किशोरी लाल जी की निष्ठा और कर्तव्य के प्रति उनका समर्पण अवश्य ही उन्हें इस चुनाव में सफलता दिलाएगा। ढेर सारी शुभकामनाएं।"
अमेठी लोकसभा से कांग्रेस उम्मीदवार किशोरी लाल शर्मा ने कहा, "मैं मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी सभी का धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने मेरे जैसे छोटे कार्यकर्ता को अपने पारिवारिक सीट की जिम्मेदारी दी है। मैं पूरी कोशिश करूंगा कि यहां मेहनत करूं। मैं 40 साल से इस क्षेत्र की सेवा कर रहा हूं। मैंने राजीव गांधी के साथ अपने करियर की शुरुआत की थी।"