ब्यूरोः कांग्रेस पार्टी की पिछड़े वर्गों को लेकर दमनकारी नीतियां दशकों से चली आ रही हैं। इस चुनाव में भी राहुल गांधी जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (JKNC) के घोषणापत्र में जम्मू-कश्मीर में दलितों, गुज्जरों, बकरवालों और पहाड़ियों के लिए आरक्षण समाप्त करने की बात की गई है। इस घोषणापत्र में कहा गया है कि सत्ता में आने पर कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस, जम्मू और कश्मीर में आरक्षण नीति की समीक्षा करेंगे।
इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की ओर से जम्मू-कश्मीर के अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), और अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) को दिए गए नए अधिकार खतरे में पड़ सकते हैं। कांग्रेस का पिछड़े वर्गों और दलितों के अधिकारों के प्रति विरोध कोई नई बात नहीं है। चाहे इंदिरा गांधी द्वारा मंडल आयोग की सिफारिशों को दबाने से लेकर वर्तमान में राहुल गांधी की नीतियों तक, कांग्रेस ने लगातार पिछड़ों के अधिकारों को लेकर हमेशा से दोहरे मापदंड अपनाए हैं।
आरक्षण और इंदिरा गांधी
1980 में इंदिरा गांधी ने मंडल आयोग की सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को आरक्षण देने की बात कही थी, लेकिन इंदिरा और उनके बेटे राजीव गांधी ने इसे अनदेखा किया। 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का समय आया, तो कांग्रेस ने फिर से इसका विरोध किया। राजीव गांधी ने यह तक कहा कि आरक्षण से कामकाजी क्षमता में कमी आएगी, जो उनकी पिछड़े वर्गों के प्रति सोच को उजागर करता है।
आरक्षण और अनुच्छेद 370 पर मंडराता खतरा
2019 में भाजपा सरकार ने आर्टिकल 370 को हटाया था, तब से जम्मू-कश्मीर के वाल्मीकि, गुज्जर-बकरवाल और पहाड़ी समुदायों के लिए एक नई उम्मीद की किरण जगी। बता दें यह समुदाय सालों से अधिकारों से वंचित थे, उन्हें आर्टिकल 370 हटने के बाद सरकारी नौकरियों और अन्य अवसरों में भागीदारी मिली।
आरक्षण के मुद्दे पर राहुल गांधी खामोश
राहुल गांधी ऐसे तो हर समय संविधान और संवैधानिक मूल्यों को बचाने की बात करते हैं, लेकिन आरक्षण के मुद्दे पर खामोश हैं। राहुल गांधी की चुप्पी कांग्रेस की सोच पर सवाल खड़े कर रही है। दरअसल, कांग्रेस ने पुराने इतिहास से दलित और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के खिलाफ काम किया है। वहीं, विदेशों में राहुल गांधी के बयानों को असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। ऐसे में ये चुनाव आरक्षण को लेकर वाल्मीकि, गुज्जर-बकरवाल और अन्य पिछड़े समुदायों का भविष्य तय करेंगे। अगर, कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का घोषणापत्र यदि लागू होता है, तो यह समुदायों को फिर से कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।