जेलों में हो रहे इन भेदभाव के बारे में जानकर दंग जाएंगे आप! जानिए SC ने क्या कहा?

By  Raushan Chaudhary October 3rd 2024 04:10 PM -- Updated: October 3rd 2024 04:42 PM

Supreme Court on Caste Discrimination in Prisons: सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय जेलों में जाति के आधार पर भेदभाव को लेकर दाखिल की गई एक जनहित याचिका पर बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जेलों में किसी भी कैदी के साथ उसकी जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि जाति के आधार पर जेलों में काम को बांटना सरासर गलत है।


जेलों में 'जाति आधारित भेदभाव' मामले पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

कोर्ट ने कहा कि जेल मेन्यूअल में साफ तौर भेदभाव किया जा रहा है और सफाई के काम को सिर्फ अनुसूचित जाति के लोगों को देना चौंकाने वाला है। कोर्ट ने कहा कि इसी तरह से खाना बनाने का काम भी जाति को देखते हुए दिया जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि जाति आधारित भेदभाव को मिटाने के लिए पुलिस ईमानदारी से काम करे।


हटा देना चाहिए जाति का कॉलम


सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जेल नियमावली में कैदियों की जाति से जुड़ी डिटेल्स जैसे संदर्भ असंवैधानिक हैं। इसके साथ ही सजायाफ्ता या विचाराधीन कैदियों के रजिस्टर से जाति का कॉलम हटा दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में जातीय भेदभाव के मामले को खुद से संज्ञान में लिया है और राज्यों को इस फैसले के अनुपालन की रिपोर्ट पेश करने को कहा है।

जेलों में भेदभाव ‘अनुच्छेद 15’ का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि जेल में सफाई का काम सिर्फ निचली जाति के कैदियों को ठीक नहीं है। ये आर्टिकल 15 का उल्लंघन है। सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश तुरंत जेल मैन्युअल में बदलाव करें।

आर्टिकल 15 क्या है?

संविधान के आर्टिकल 14 से लेकर आर्टिकल 18 तक में देश के सभी नागरिकों को समता यानी समानता का मौलिक अधिकार देने की बात कही गई है।भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मौलिक अधिकार दिये गए हैं।

आर्टिकल 15 के चार प्रमुख बिंदु

 

  •  आर्टिकल 15 के नियम 1 के तहत राज्य किसी भी नागरिक के साथ जाति, धर्म, लिंग, जन्म स्थान और वंश के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता।

 

  •  नियम 2 के मुताबिक, किसी भी भारतीय नागरिक को जाति, धर्म, लिंग, जन्म स्थान और वंश के आधार पर दुकानों, होटलों, सार्वजनिक भोजनालयों, सार्वजनिक मनोरंजन स्थलों, कुओं, स्नान घाटों, तालाबों, सड़कों और पब्लिक रिजॉर्ट्स में जाने से नहीं रोका जा सकता।

 

  • वैसे तो देश के सभी नागरिक समान हैं, उनसे भेदभाव नहीं किया जा सकता, लेकिन महिलाओं और बच्चों को इस नियम में अपवाद के रूप में देखा जा सकता है। आर्टिकल 15 के नियम 3 के मुताबिक, अगर महिलाओं और बच्चों के लिये विशेष व्यवस्था किये जा रहे हैं तो आर्टिकल 15 ऐसा करने से नहीं रोक सकता। महिलाओं के लिये आरक्षण या बच्चों के लिये मुफ्त शिक्षा इसी नियम के तहत आते हैं।

 

  • इस आर्टिकल के नियम 4 के मुताबिक, राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े तथा SC/ST/OBC के लिये विशेष नियम बनाने की छूट है।

अदालत ने इस साल जनवरी में महाराष्ट्र के कल्याण की निवासी सुकन्या शांता की याचिका पर केंद्र और उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल सहित 11 राज्यों से जवाब मांगा था। न्यायालय ने इस दलील पर गौर किया था कि इन राज्यों के जेल नियमावली उनकी जेलों के अंदर काम के आवंटन में भेदभाव करते हैं और कैदियों की जाति से ही उनके रहने की जगह तय होती है।

 

संबंधित खबरें