दिल्ली: उपराज्यपाल ने 'खालिस्तानी फंडिंग' को लेकर केजरीवाल के खिलाफ एनआईए जांच की सिफारिश की, जानिए क्यों

By  Naveen Negi May 6th 2024 10:53 PM

नई दिल्ली: दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने सोमवार को प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) से कथित तौर पर फंडिंग के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ एनआईए जांच की सिफारिश की है।

केंद्रीय गृह सचिव को लिखे पत्र में उपराज्यपाल सक्सेना ने एक शिकायत को आधार बनाते हुए लिखा है कि केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (आप) को कथित तौर पर देवेंद्र पाल भुल्लर की रिहाई के लिए चरमपंथी खालिस्तानी समूहों से 16 मिलियन अमेरिकी डॉलर की फंडिंग मिली थी।

अमृतसर सेंट्रल जेल में बंद भुल्लर को 1993 में दिल्ली में एक बम विस्फोट में 9 लोगों की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था। उन्हें 25 अगस्त, 2001 को टाडा अदालत द्वारा मौत की सजा सुनाई गई थी और सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनकी मौत की सजा को कम करने के बाद से वह आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं।

गृह मंत्रालय को अपने सिफारिशी पत्र में एलजी ने यह भी कहा कि आरोप मुख्यमंत्री के खिलाफ है और मामला भारत में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन से एक राजनीतिक दल को लाखों डॉलर की कथित फंडिंग से संबंधित हैं और शिकायतकर्ता द्वारा दिए गए इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों की फोरेंसिक जांच की आवश्यकता है।

शिकायतकर्ताओं द्वारा पेन ड्राइव में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य दिए गए हैं, जिसमें खालिस्तानी आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नून द्वारा जारी एक वीडियो का हवाला दिया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप को 2014 और 2022 के बीच खालिस्तानी समूहों से 16 मिलियन अमेरिकी डॉलर मिले हैं।

ये शिकायत विश्व हिंदू महासंघ भारत के राष्ट्रीय महासचिव आशू मोंगिया द्वारा की गई थी, जिसमें आप के पूर्व कार्यकर्ता मुनीष कुमार रायज़ादा द्वारा किए गए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर की गई एक पोस्ट का संदर्भ भी दिया गया था।

आप सरकार ने मंत्री ने उप राज्यपाल पर साधा निशाना

दिल्ली की आप सरकार में मंत्री सौरभ भारद्वाज ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एलजी की पार्टी फंडिंग को लेकर एनआईए जांच की सिफारिश को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी।

उन्होंने लिखा कि एलजी साहब चुनावी मौसम में सुर्खियां बटोरने की कोशिश कर रहे हैं। यह पूरी तरह से एलजी के संवैधानिक पद का दुरुपयोग है। मामले में उच्चस्तरीय जांच की मांग वाली जनहित याचिका को दो साल पहले हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी। इस मामले को पूरी तरह से फिजूल बताया था।

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